BHAGWAT GITA by Janvi Kapdi
Janvi Kapdi
Categories: Arts
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अध्याय 5 – आत्मसंयम योग (कर्म संन्यास और योग)1. संन्यास और कर्मयोग में अंतर
अर्जुन पूछते हैं: “हे कृष्ण! कर्म त्याग (संन्यास) श्रेष्ठ है या कर्मयोग (कर्म करते हुए योग)?”
कृष्ण बताते हैं:
संन्यास: दुनिया के कर्मों से मोक्ष प्राप्त करने का मार्ग।
कर्मयोग: दुनिया में रहते हुए, अपने कर्तव्य को बिना आसक्ति किए निभाने का मार्ग।
निष्काम कर्मयोग संन्यास से भी श्रेष्ठ है, क्योंकि इसमें मन और इन्द्रियाँ सक्रिय रहते हुए भी स्थिर रहती हैं।
योगी वही है जो इन्द्रियों और मन पर नियंत्रण रखता है।
इच्छाओं और लालसा से मुक्त रहकर जो कर्म करता है, वह सच्चा योगी है।
संयमित मन और आत्मा की स्थिरता से जीवन में शांति और आनंद आता है।
सुख-दुख, लाभ-हानि, जय-पराजय में समभाव रखना आवश्यक है।
फल की चिंता छोड़कर कर्म करना ही आत्मसंयम है।
ऐसा व्यक्ति संसार में रहते हुए भी मोक्ष के समान स्थिति में होता है।
आत्मसंयम योगी के लिए ज्ञान और भक्ति दोनों आवश्यक हैं।
ज्ञान से मन स्थिर होता है और भक्ति से कर्म पवित्र बनता है।
यह योग जीवन में संतुलन, स्थिरता और मोक्ष का मार्ग दिखाता है।
कर्मयोग और संन्यास में सत्य आत्मसंयम सर्वोच्च है।
इच्छाओं और इन्द्रियों पर नियंत्रण रखकर निष्काम भाव से कर्म करना ही योग है।
आत्मसंयम योगी दुनिया में रहते हुए भी मुक्त और शांत रहता है।
आत्मसंयम योग हमें सिखाता है कि मन, इन्द्रियों और कर्म पर नियंत्रण ही सच्चा योग है। जब हम फल की चिंता छोड़े और अपने कर्तव्य को संयम और भक्ति भाव से निभाएँ, तभी हम जीवन में स्थिरता, शांति और मोक्ष प्राप्त कर सकते हैं।
2. आत्मसंयम और मन का नियंत्रण3. समभाव और निष्काम कर्म4. ज्ञान और भक्ति का संबंधमुख्य संदेशसारांश
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8 - आत्म संयम योग Tue, 30 Jul 2024
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7 - Gyan karm sanyas yog Wed, 02 Aug 2023
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6 - Karm yog Wed, 10 Aug 2022
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4 - Sankhya yog part 2 Wed, 04 May 2022
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